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बीकानेर में प्रगतिशील किसान ने उगाई अमेरिकन केसर

अंचल में पहली बार चिया सीडस की खेती सफल
राजस्थान 1st न्यूज,बीकानेर। सूडसर उपतहसील क्षेत्र में एक प्रगतिशील किसान ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद स्वरोजगार के लिए व्यापार की शुरुआत की लेकिन व्यापार से संतुष्ट नहीं हो पाये तो फिऱ उन्होंने कृषि क्षेत्र में नवाचार करने का विचार कर प्रदेश के किसानों में आय में वृद्धि कर क्षेत्र में प्रगति ला सके। उसके लिए कम ख़र्चे में अधिक मुनाफे वाली फसलों में नवाचार कर रहे है। इसलिए उन्होंने खेती बाड़ी करने की ठानी।

 

सूडसर गांव के किसान मांगीलाल स्वामी ने इस वर्ष रबी फसल में 5 बीघा में कुसुम (अमेरिकन केसर) 5 बीघा में चिया सीडस की प्रायोगिक तौर पर खेती की शुरुआत की गई। उन्होंने ने बातचीत में बताया कि वो बीकानेर जिले के प्रथम किसान है साथ ही राजस्थान के पहले किसान है यह किसान का दावा है। दोनों ही खेती ओषधिगुणो से भरी है इसलिए औषधि श्रेणी में आती है।

 

और पूर्ण रूप से ऑर्गेनिक है। जिसमें किसान को कम लागत में अधिक मुनाफा होता है। कुसुम की खेती सामान्यत: 5 डिग्री सेल्सियस तापमान से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान के मध्य तापमान वाले क्षेत्र व 5.5 से 7.5। मध्यम काली मिट्टी में चार से पांच सिंचाई में आसानी से उगाया जा सकता है। जिसका बिजान मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर तक किया जाता है प्रति बीघा 8 किलों बीज सिडल द्वारा डाला जाता हैं जिसका उत्पादन प्रति एकड़ कुसुम अमेरिकन केसर का 15 क्विंटल बीज व एक क्विंटल केसर की पंखुडिय़ों का उत्पादन होता है। पंखुडिय़ों का न्यूनतम मुल्य 80 हजार से एक लाख के मध्य रहता है। बाकी बाजार में मांग और गुणवत्ता के आधार परनिर्भर करता है।

वहीं चिया सीडस को 5 डिग्री सेल्सियस तापमान से 37 डिग्री सेल्सियस तापमान के मध्य रबी व खरीफ की दोनों फसलों में लगाया जा सकता है। 6.5 से 8.5 क्क॥ वाली किसी भी प्रकार कि मिट्टी या अधिक उपज के लिए दोमट मिट्टी में अक्टूबर के शुरुआत में बिजान कर पांच से छह सिंचाई में 135 से 145 दिनों के मध्य पक कर तैयार हो जाती है। जिसका प्रति बीघा उत्पादन 3 से 4 क्विंटल होता है जिसका बाजार मुल्य वर्तमान में 17 हजार से 25 हजार के मध्य प्रति क्विंटल चल रहा है।

 

बाकी गुणवत्ता और बाजार कि मांग पर निर्भर करता है। यह मूल रूप से युरोपीयन देशों की तिलहन फसल है जिसका इन दिनों मांग बढऩे के कारण मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र व राजस्थान में कुछ चुनिंदा स्थानों पर पिछले दो सालों से प्रायोगिक तौर खेती की शुरुआत हुई है। इसका तेल कोलस्ट्रॉल नियंत्रण करने के लिए हृदय रोगी इस तेल का सेवन कर रहे हैं।

और प्रोटीन के रूप में स्नेक्स, बिस्किट, लड्डू के रूप में उपयोग में लिया जाता है। इसको सुपर फुड के रूप में जाना जाता है। वहीं केसर का उपयोग चाय, मसाले, मिठाईयां, सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री बनाने में बहुतायत से उपयोग किया जा रहा है। जिसके कारण बाजार में लगातार मांग बढ़ रही है। इसकी खेती करके किसान अपनी आमदनी में इजाफा कर सकते हैं।