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हरि शंकर आचार्य के हिंदी गीत संग्रह ‘अनहदनाद’ का हुआ विमोचन




राजस्थान 1st न्यूज,बीकानेर। हरि शंकर आचार्य के गीत विषयों की वैविध्यता लिए हैं। इनमें प्रकृति के सभी रंग हैं। पंछियों का कलरव है। जीवन की क्षणभंगुरता को दर्शाने वाले ये गीत, सृजन की दुनिया में विशेष स्थान हासिल करेंगे।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. उमाकांत गुप्त ने रविवार को जिला उद्योग संघ सभागार में हरिशंकर आचार्य की चौथी पुस्तक और पहले हिंदी गीत संग्रह अनहदनाद के विमोचन के दौरान यह उद्गार व्यक्त किए।

मुक्ति संस्था, शब्दरंग और सूर्य प्रकाशन मंदिर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम के दौरान डॉ. गुप्त ने कहा कि पुस्तक के सभी के सभी गीत विषयों की दृष्टि से परिपक्व हैं। इनकी लयबद्धता इन्हें और अधिक पठनीय बनाती हैं। उन्होंने कहा कि यह गीत रचना अत्यंत चुनौतीपूर्ण हैं। आचार्य इस पर खरे उतरे हैं। उन्होंने कहा कि पुस्तक में सभी रसों को समाहित करने का प्रयास किया गया है।

मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए वरिष्ठ कवि कथाकार राजेंद्र जोशी ने कहा कि ये गीत मन का नाद हैं। अनहदनाद को समझना और महसूस करना अत्यंत दुष्कर कार्य है। आचार्य के गीत इस नाद तक पहुंचने में सफल हुए हैं। उन्होंने कहा कि बीकानेर में लयबद्ध गीत रचने की समृद्ध परंपरा रही है। आचार्य ने इसका अनुसरण करते हुए नया अध्याय रचा है। यह गीत समझने में जितने सरल और सहज हैं, इनके अर्थ उतने ही गूढ़ हैं। जो कवि मन की परिपक्वता को दर्शाते हैं।

इससे पहले अतिथियों ने मां सरस्वती के छायाचित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की और ‘अनहदनाद’ का लोकार्पण किया। आचार्य ने अपनी सृजन यात्रा के बारे में बताया और अनहदनाद, किताब, जय जय हिंदुस्तान सहित विभिन्न गीत प्रस्तुत किए। जिला उद्योग संघ के अध्यक्ष द्वारका प्रसाद पचीसिया और दुर्गा शंकर आचार्य भी इस दौरान मौजूद रहे।
पत्रवाचन करते हुए हरीश बी. शर्मा ने पुस्तक के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। संग्रह के गीतों की विषय वस्तु के बारे में बताया और कहा कि साहित्य के आलोक पर यह गीत लंबे समय तक आलोकित रहेंगे।

 

वरिष्ठ गीतकार राजाराम स्वर्णकार ने स्वागत उद्बोधन दिया। उन्होंने बीकानेर की साहित्यिक परम्परा के बारे में बताया। गोपाल जोशी ने आभार जताया। कार्यक्रम का संचालन संजय आचार्य ‘वरुण’ ने किया। कार्यक्रम के दौरान विभिन्न संस्थाओं और लोगों द्वारा आचार्य का अभिनंदन किया गया।

आचार्य द्वारा यह पुस्तक जनसंपर्क विभाग के पूर्व संयुक्त निदेशक दिनेश चंद्र सक्सेना को समर्पित की गई। आचार्य ने अपने माता-पिता को पहली प्रति भेंट की।
इस दौरान दुर्गा शंकर आचार्य , डी पी पच्चीसिया , डॉ. अजय जोशी, योगेंद्र पुरोहित, इरशाद अज़ीज़, डॉ. चंद्र शेखर श्रीमाली, अब्दुल शकूर सिसोदिया, आनंद जोशी, डॉ. गौरव बिस्सा, राहुल जादूसंगत, हेमाराम जोशी, प्रेम नारायण व्यास, नरसिंह भाटी सहित बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी मौजूद रहे।

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