राजस्थान 1st न्यूज,बीकानेर। हाल ही में कुछ समय से डिजिटल अरेस्ट शब्द बार बार सुर्खियों में आ रहा है। इसकी वजह से कई अमीर लोगों को डिजिटल अरेस्ट के नाम पर लाखों और करोड़ों रुपये तक का नुकसान झेलना पड़ रहा है। यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस स्कैम को लेकर एक चेतावनी जारी की है।
जी हां यह एक प्रकार की साइबर ठगी है। यह लोगों का शोषण करने के लिए एक नया और खतरनाक तरीका है। इस शब्दावली के दो हिस्से हैं डिजिटल अरेस्ट और स्कैम या ठगी।
इसमें अक्सर फोन पर या ऑनलाइन संचार के माध्यम से डिजिटल माध्यम से किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का झूठा दावा करते हैं। मकसद केवल लोगों में दहशत का माहौल पैदा करना है जिसके बाद पीडि़त व्यक्ति को यह यकीन दिलाया जाता है कि वह आपराधिक गतिविधियों में शामिल है और आखिरकार उनसे बड़ी रकम ऐंठ ली जाती है। इस पूरी प्रक्रिया को बहुत ही नियोजित तरीके से अपनाया जाता है, जिससे वारदात होने के बाद पीडि़त व्यक्ति कभी अपराध की रिपोर्ट ना कर सके।
यह कई तरीकों से हो सकता है लेकिन इसमें सबसे अहम बात यही होती है कि फंसे हुए व्यक्ति को धमकी या लालच देकर घंटों या कई दिनों तक कैमरे के सामने बने रहने के लिए मजबूर किया जाता है जिससे वह घबराहट में अपनी कई निजी जानकारी दे देता है जिसका इस्तेमाल कर उसके अकाउंट पैसा निकालना, उसके नाम से फर्जी काम भी किए जाते हैं और कैश रकम लेना तो इसमें शामिल ही रहता है।
पूरे स्कैम की शुरुआत का सरल मैसेज, ईमेल, या व्हाट्सऐप संदेश से होती है। जिसमें दावा किया जाता है कि पीडि़त व्यक्ति किसी तरह की आपराधिक गतिविधियों में संलग्न है। इसके बाद उसे वीडियो या फोन कॉल करके कुछ खास प्रक्रिया से गुजरने के लिए दबाव डाला है और पुष्टि के लिए कई तरह की जानकरियां भी मांगी जाती हैं। ऐसे कॉल करने वाले खुद को पुलिस, नॉरकोटिक्स, साइबर सेल पुलिस, इनकमटैक्स या सीबीआई अधिकारियों की तरह पेश करते हैं। वे बाकायदा किसी ऑफिस से यूनिफॉर्म में कॉल करते हैं।
इसके बाद पीडि़त पर गलत आरोप लगा कर उसे तनाव में लाते हुए उस पर कानूनी कार्रवाई करने की धमकी दी जाती है और दावा किया जाता है कि पूछताछ होने के दौरान उसे वीडियो कॉल पर ही रहना होगा और वह किसी और से बातचीत नहीं कर सकता है, जब तक कि उसके दस्तावेज आदि की पुष्टि नहीं होती है।
यहीं पर पीडि़त को बेचैन कर तनाव लाया जाता है जिसके बाद तमाम जानकारी हासिल करने के बाद उससे मामला शांत करने के लिए बातचीत की जाती है जिसमें उससे बड़ी रकम देने को कहा जाता है। ये पैसे ऐसे अकाउंट में डलवाए जाते हैं जिनका अपराधियों की पहचान से कोई लेना देना नहीं होता है और पैसा भी वहां से तुरंत निकाल कर ये लोग गायब हो जाते हैं।
यह डिजिटल अरेस्ट इंटरनेट के जरिए ब्लैक मेल से कहीं ज्यादा और खतरनाक है क्योंकि इसमें पैसे साथ साथ संवेदनशील जानकारियां भी हासिल कर ली जाती है। इसमें बैंक अकाउंट नंबर, क्रेडिट कार्ड नंबर, पासवर्ड आदि शामिल हैं। यहां गौर करने वाली बात ये है कि हमारे देश में इस तरह से किसी भी प्रकार की पूछताछ, जांच, या गिरफ्तारी का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। एक्सपर्ट सलाह देते हैं कि इस तरह के मामलों में निजी जानकारी ना दें, किसी भी हालत में पैसा कहीं भी ट्रांसफर ना करें, और मामले की पूरी जानकारी पुलिस को दें।
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